शुक्रवार, 31 जुलाई 2009

चलना -चलना और चलना
अनथक मन करता रहता सदा यात्रा
पकड़ता बार- बार उन घटनाओं को
जो बीत गयीं पर रीती नही
जो घटी बार -बार
झांक झांक पड़ती
मन के झरोखों से
दौड़ती चेतना के इस पार उस पार
भटकती तलाशती उसे जो नही मिला
पार था इप्सित
रहता नही चाँद हरदम रात क्र साथ
छोड़ देता है सूरज भी का हाथ
सूख जाती नदी एक दिन
रुक जाती हर गति एक दिन
नही रूकती इस मन की गति
हर पल कलती अनथक
गुजरे- अन्गुजरे पलों के बीछkया यही है जिन्दगी?

गुरुवार, 30 जुलाई 2009

नही कोई कीमत इस जहाँ में
कलि से बनते फूल की
अंधेरे पे धीरे -धीरे आते प्रकाश की
फूल को छूकर उड़-उड़ जाती तितली की
नही कोई कीमत
माँ से जन्मते शिशु की
निराशा को आशा मैं बदलती हँसी की
मासूमियत से भरे बचपन की
गिरने पर थाम लेने वाले स्नेह -संबल की
प्यार से सराबोर छलकती आखों की
उस नज़र की जो प्यार से बरस जाती आप पर
जैसे बरस जाती बदली सावन की धरा पर.

बुधवार, 29 जुलाई 2009

यूँ ही

यूँ ही कभी लगता है की जिस दुनिया मैं हम रह रहे हैं वो किस प्रकार की है?
सवाल कितने उठते हैं पर जवाव कहीं नही मिलता
कब तक हम इसकी मर्जी से जीने को मजबूर रहेंगे
क्या हम बिल्कुल ख़त्म नही होते जा रहे
हम नही बदले तो हम इंसानको खो देंगे
खाने से अधिक इस दुनिया को प्यार.ममता,सहनशीलता की जरूरत है
और उस तेज की जो हमें मानव से महामानव बनाता. है.