रात का पृष्ठ बदल रोज नया एक दिन आता है
बुझते सपने रोशन करने मन -दीपक फिर जल जाता है
पीले हो जाते हैं पत्ते उपवन सारा झाड़ जाता है
खिलती कलियाँ बतलाती हैं रुको जरा बसंत आता है
रूठा समय मानते -मनते दिल का धीरज खो जाता है
गिरते आंसू समझाते हैं दुःख जाता है सुख आता है
रविवार, 23 अगस्त 2009
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